चीनी माल का सिर्फ भावनात्मक व अस्थाई बहिष्कार – एक अधूरा इलाज.
वर्तमान में भारत में एक अच्छी, तारीफे काबिल व भावनात्मक लहर चल रही है – ‘चीनी वस्तुओ का बहिष्कार’ लेकिन हम भारतीयों के स्वभाव से हम कल्पना कर सकते है कि हमारा यह ‘बहिष्कार अभियान’ तात्कालीन अस्थाई रिएक्शन मात्र है. साथ ही साथ, यह ‘चीनी वस्तुओ का बहिष्कार’ पाकिस्तान व चीन के साथ-साथ हमारे देश का भी अस्थाई व अधुरा इलाज है. विडम्बना है कि हमारे यहाँ जनता से तो उम्मीद की जाती है कि वो ‘चीनी वस्तुओ का बहिष्कार’ करे और हमारी सरकारे ‘चीनी वस्तुओ का आयात’ करवा कर हमारे देश के ‘व्यापारियों को दिवालिया’ बनाए और यहाँ के ‘कारखानों के ताले लगवाये’.
यहाँ पर यह समझने की आवश्यकता है कि जो काम जनता कर रही है, वो काम सरकार को करना चाहिए भले ही सरकार की कितनी भी मजबूरिया हो. यदि पाकिस्तान व चीन को सबक सिखाने की बात को अलग ही रख दे तो भी यह देश के हित में है कि आयात (Imports) घटाए जाए तथा पाकिस्तान व चीन से आयात (Imports) न्यूनतम किये जाए. यदि सरकार की इच्छा शक्ति हो तो कोई भी अंतराष्ट्रीय कानून हमें ऐसा करने से नहीं रोक सकता.
हमारे पास इतने होशियार (Intelligent) दिमाग है कि हम अंतराष्ट्रीय कानून को मानते हुए पाकिस्तान व चीन से आयात (Imports) को बंद कर सकते है या घटा सकते है. लेकिन हो बिलकुल उल्टा रहा है. क्या कोई बता सकता है कि देश में प्रदुषण (pollution) फेलाने लिए चीन से फटाके क्यों आयात किये जा रहे है तथा देश की अर्थ व्यवस्था में इन चीनी फटाको की क्या अहमियत है ? क्या यह हमारी सरकार की आँख बंद करने वाली गलत नीति नहीं है ? हकीकत में होना यह चाहिए कि न केवल चीनी फटाके बल्कि प्रत्येक गेर-जरूरी प्रदुषण फेलाने वाले सामानों के आयात (Imports) पर प्रदुषण (Pollution) को लक्ष्य (Target) में रखकर होशियारी से नियंत्रण / प्रतिबंध कर देना चाहिए.
लगभग यही नीति प्रत्येक गेर-जरूरी सामान (जेसे खिलोने, टायर्स, साइकिल, बिजली के सामान, फर्नीचर, डेकोरेशन के सामान व टाइल्स आदि अनेकानेक आइटम) के आयात के पर लागू की जानी चाहिए. हमारे पास एक नहीं अनेक वाजिब कारण है [जेसे प्रदुषण (Pollution), क्वालिटी (Quality) , मानक (Standards) आदि ] जिनके आधार पर ऐसी गेर-जरूरी सामानो का आयात (Imports) पर नियंत्रण / प्रतिबंध किया जा सकता है.
व्यापारी कही का भी क्यों नहीं हो वह अपने नफे व स्वार्थ से प्रेरित होकर अपने दुश्मन के साथ भी व्यापार करने से परहेज नहीं करता लेकिन भारत में ऐसे गेर-जरूरी सामानो के आयातक व्यापारियों को तो बड़े ही आराम से नियंत्रित किया जा सकता है. यदि ‘राज ठाकरे’ अपने अराजक तरीके से फिल्म निर्माताओं को पाकिस्तानी कलाकारों को हिन्दुस्तानी फिल्मो से रोक सकता है, तो हमारी सरकारे हमारे व्यापारियों को आयात करने से क्यों नहीं रोक सकती है ? अत: इलाज केसा भी हो, स्थाई होना चाहिए जिसके लिए प्रचार-प्रसार की भी कोई आवश्यकता नहीं है लेकिन हमारे यहाँ अधिकतम ऊर्जा तात्कालीन राजनीतिक लाभ के लिए प्रचार-प्रसार में खर्च की जाती है न कि दीर्घकालीन व स्थाई रूप से देश हित में क्रियान्वयन के लिए.
यहाँ कोई जन कल्यानकारी सरकार है ही नही। सारे जन विरोधी कार्य हमारे देश में सरकार ही करती है।इसलिये कोई अन्य उपाय बतावे।
प्रिय श्रीमान,
आपके सामने ‘नया भारत’ का प्रस्ताव आ गया होगा. उस पर गोर करे शायद आपको कोई रास्ता नजर आये. वेसे आप भी कुछ लिखे तो सभी का ज्ञानवर्दन हो सकता है.